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बिसवास / दीनदयाल शर्मा

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|संग्रह=रीत अर प्रीत / दीनदयाल शर्मा
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<poem>
पिताजी
सूरज उगण सूं
पैलां ईं
घणी काड लेंवता
हळाई खेत में
आंधी सांश्‍ड सूं


पशुआं नै
कित्तौ हुवै बिसवास
आपरै मालक माथै

बै नीं द्यै औळमौ
नीं दीसण रौ

अर
बगै तापडिय़ां
राखै
काम सारू काम।
</poem>
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