1,583 bytes added,
02:22, 29 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दीनदयाल शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=रीत अर प्रीत / दीनदयाल शर्मा
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
म्हूं बटाऊचारै
ब्याव में गयौ
जैपर
अर
इग्यारै बरसां री
बेटी मानसी भी
ही साथै
ब्यावआळां रै
पूगतांईं घरां
म्हे
खड़्या रैया
घणी ताळ
आंगणै बिचाळै
बठै मचरी
आफळ-ताफळ
अर
सगळा होर्या
उकळ-चुकळ
म्हारी आँख्यां में झांकती
घर नै सरांवती
अर
घरआळां नै
बिसरांवती
मानसी बोली
पापा
मकान तो
भौत फूटरौ है
पण लोग
चोखा कोनी
म्हूं बोल्यौ
ईंयां नीं कैया करै
थोड़सीक ताळ में
तैं
के देख लियौ इस्सौ
बा
उदास होय'र बोली
अजे तांईं
कणी बैठण रो ई
नीं कैयौ
म्ह होळैसीक बोल्यौ
होळै बोल
औ
सै'र है
गांव थोड़ो ई है
सै'र रा
नेम कायदा
अळगा हुवै।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader