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02:58, 29 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दीनदयाल शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=रीत अर प्रीत / दीनदयाल शर्मा
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<poem>
म्हे रैह्वां
अेक घर मांय
तीन घर
बणाय'र ।
भींत....!
भींत क्यूं देखै
कोई दूजो
क्यूं कै
भींत बणा राखी है
म्हे
आप - आपरै भीतर ।
</poem>
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