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03:04, 29 जून 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=दीनदयाल शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=रीत अर प्रीत / दीनदयाल शर्मा
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<poem>
मेरै मोहल्लै में
बणाया है
लोगां
बडा-बडा बंगला
अर लूंठी-लूंठी कोठ्यां
जठै
पांखी भी
नीं मार सकै 'पर'
अर
पून नै भी
भीतर आण सारू
जरूत पड़ै
इजाजत री
अर इन्नै
मेरौ छोटौ सो घर
कोठी-बंगलां रै बिचाळै
खड़्यौ है
नान्हो सो
भोळौ सो
टाबर दांईं
सिर कुचरतौ
आकास कानी झांकतौ
अर
आपरै पांती रौ
तावड़ौ भाळतौ।
</poem>
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