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बेटी-२ / दुष्यन्त जोशी

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|संग्रह=अेकर आज्या रै चाँद / दुष्यन्त जोशी
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<poem>
बेटी
इण जुग सूं
कित्ती लड़ै
जलम सूं लेय'र
आखरी सांस तांईं
लड़ती रैवै

भूख-तिस
हारी-बीमारी
सगळां नै लांघज्यै
पण
आदमी रै सा'मै
कद तांईं
मानती रै'सी हार

स्यात
जिण नै आपां
हार समझां
बा हार नीं
ईं रौ समर्पण लखावै

पण
बा आपरी जुबान सूं
किण नै ई
कीं' नीं बतावै।
</poem>
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