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कोयल बिकती है / रामनरेश पाठक
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10:14, 4 जुलाई 2017
बुलबुल का गीत
तपी आंच पर भुनता है,
चकई इंगोरा
निगालतीं
निगलतीं
हैं,
कोयलें बिकती हैं.
फूल
पिस्ता
पिसता
है,पत्थर भी
डूब
दूब
के गीतों को सहता है,
मरुवन में झरनों का गीत भी सिसकता है,
कोयलें बिकतीं हैं
Anupama Pathak
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