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11:21, 9 जुलाई 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|अनुवादक=
|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
स्सो ठाह है उणनैं
गळी सूं कांई छानो है?
उतरादी कूंट सूं
दिखणादी कूंट तांई
हरेक घर, हरेक मिनख री
कुंडळी राखै बा
च्यानणै अर अंधारै री
ओळखै असलियत।
ठाह है उणनैं
दुतल्ला हेली में
दस सूं बेसी कमरा है
पण कोनी जगैं
उण डोकरी रै
साढी पांच फुटी माचै सारू
कदी बरामदै
तो कदी गैराज में
बा कींकर ठरडै बगत!
गळी जाणै
कींकर बाजै बांस
चवडै़ आंगणै वाळै घर में
आथण-दिनूगै
मंडै महाभारत
पांती सारू।
गळी नैं खबर है
कींकर मूंघै मारबळ वाळै
नवोड़ै घर री छोरी
धोळै दोपारै
गळी में उडीक बोकरै
आपरै भायलै नैं
अर जद-कद
उणरै मोटरसाइकल माथै बैठ'र
जावती दीसै।
ओळखै गळी
रातै रंग वाळै
सरकारु क्वार्टर सूं
निकळण वाळी कार में
जावण वाळो अधखड़
अमूमन फोर लेवै
सारली सीट री जनानी सवारी।
पण भळै ई
लुगाई जात गळी
पचा लेवै पेट में-
सगळा राज!
सगळी कथावां!!
मरी ई नीं परगासै
बीजी गळ्यां साम्हीं
अठपौर रुखाळै
गळी री मरजादा!
</poem>
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