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12:39, 9 जुलाई 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|अनुवादक=
|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
थूं पिता है जळ
अथाग
थारो हियो-समदर।
म्हैं नाव
थारी लाडकंवरी।
बीज सूं बिरवै
बिरवै सूं बिरछ
बिरछ री लकड़ी सूं
म्हारी घड़ंत
थारै पांण जळमी
पळी-पनपी
अर धर्यो रूप।
बाप री गोदी
लाडां-कोडां
उछळती फिरूं
सात समदर!
</poem>
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