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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
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<poem>
वेा अच्छा आदमी था आ गया बातों में वो कैसे।
शहर हैराँ है सारा आ गया झाँसों में वो कैसे।

वो बच्चा तो नहीं था, नासमझ भी तो नहीं था फिर,
बना सुर्खी जमाने भर के अखबारों में वो कैसे।

सियासत का परिन्दा वो बड़ा जाँबाज था लेकिन,
फँसा रंगीनियों में इश्क के खेलों में वो कैसे।

सुना है कल तलक कलियों पक डोरे डालता था वो,
मगर अब आ गया है ख़ुद बड़े फंदों में वो कैसे।

समय अब वो नहीं हैं, वो ज़माना भी नहीं उसका,
वफ़ादारी चला है ढूँढने चमचों में वो कैसे।
</poem>
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