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10:51, 13 जुलाई 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
दुनिया में अपनी खुश मुझे रहना पसन्द है।
इस चक्रव्यूह में मुझे मरना पसन्द है।
बाहर की फ़जायें बहुत ही ख़ुशनुमा मगर,
भीतर की आग में मुझे जलना पसन्द है।
पत्थर बनूँ तो देवता यदि शर्त है यही,
तो मोम बनके मुझको पिघलना पसन्द है।
देखा है उस ग़रीब का चेहरा क़रीब से,
मैं क्या बताऊँ ग़म मुझे कितना पसन्द है।
जन्नत का सफ़र भी मुझे तन्हा नहीं कबूल,
दुंनयाए कारवाँ में ही चलना पसन्द है।
जो ज़ुल्म के खि़लाफ़ बोलना पसन्द है,
अपने गुनाह के लिए सुनना पसन्द है।
</poem>
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