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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
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<poem>
मुझे साथ अपने जो ले चले मुझे उस जहाँ की तलाश है।
नयी कोंपलों का जो जन्म दे मुझे उस खिजाँ की तलाश है।

तेरा ये शहर भी अजीब है कि हवा भी है जहाँ क़ैद में,
मेरा दिल यहाँ पे लगे नहीं खुले आसमाँ की तलाश है।

मुझे हुस्न उसका पता न था, कभी प्यार का ये नशा न था,
मेरा रोम - रोम है कह रहा मुझे जाने-जाँ की तलाश है।

जहाँ लोग थे और भीड़ थी वहाँ रास्ता आसान था,
तन्हा भी है कोई जिंदगी मुझे कारवाँ की तलाश है।

जो बसा नहीं उसे क्या पता कि उजाड़ से भी लगाव हो,
जो सता - सता के रूला रहा उसी मेहरबाँ की तलाश है।
</poem>
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