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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
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<poem>
भावुकता के बिना शून्य जीवन लगता।
भावुकता से लेकिन काम नहीं चलता।

मेरे घर का दीप भरोसेमंद तो है,
घना अँधेरा उस से किन्तु नहीं डरता।

माँ से बढ़कर कोई और नहीं होता,
पर, सुंदर अतीत पर वक़्त नहीं रूकता।

शाख़ टूट जाती है आँधी आने पर,
पात हरा छोटा -सा, किन्तुू नहीं गिरता।

थाली आती है जब मेरे खाने की,
बेटा मँहगाई का जिक्र तभी करता।
</poem>
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