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09:24, 5 अगस्त 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=उजाले का सफर / डी. एम. मिश्र
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<poem>
जो तुझे छोड़ गये तू भी उन्हें याद न कर।
वो थे मौसम की तरह ओ मेरे वीरान नगर।
मानता हूँ कि कोई ज़ोर नहीं चल पाता,
याद आयेगा बहुत तुझको भी गुज़रा मंज़र।
आजकल लोग तरक्की की बात करते हैं,
मेरे बाबा की लगायी हुई बगिया है किधर।
ये मकाँ कुछ नहीं देगा तुझे जईफ़ी में,
खाट भी कोई मिलेगी तो वो इनायत पर।
अब बुजुर्गों की ज़रूरत नई पीढ़ी को नहीं,
भूल जा अपने तज़ुर्बो की कोई बात न कर।
</poem>
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