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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=उजाले का सफर / डी. एम. मिश्र
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<poem>
तुम खुश रहो, हम खुश रहें अपनी जगह-अपनी जगह।
तुम भी जियो, हम भी जियें अपनी जगह-अपनी जगह।

यह नीर सच, वह पीर सच, यह रात सच, वह प्रात सच,
मन को रखें, तन को रखें अपनी जगह-अपनी जगह।

तुम भी सही, हम भी सही, जो है नियम वह भी सही,
तुम भी सहो, हम भी सहें अपनी जगह-अपनी जगह।

मजबूर तुम, मजबूर हम, मजबूरियों से क्या गिला,
शबनम गिरे, शोले बुझें अपनी जगह-अपनी जगह।

इस बर्फ़ में, उस आग में कुछ बात है जो एक है,
जब तक जियें उगलें धुयें अपनी जगह-अपनी जगह।
</poem>
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