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तुम्हें मैंने बैजनी कमल कहकर पुकारा
और अब भी अकेलेपन की पहाड़ से उतरकर
मै मैं आऊँगा हमारी परछाइयों के ख़ुशबूदार
गाते हुए दरख़्त के पास
मै मैं आता रहूँगा उजली रातों में
चन्द्रमा को गिटार-सा बजाऊँगा
तुम्हारे लिए
</poem>
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