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कभी कल्पना के पंखों पर भी उड़ लिया करो।करो
कविता को कुछ और समीप हृदय के किया करो।
यह संसार बड़ा विस्तृत है पा न सकोगे सब,
कुछ पाओ, कुछ जीवन के अनुभव में जिया करो।
पीने में अधरों की अपनी सीमाएँ होतीं,
नक्षत्रों की प्यास जगे तो दृग से पिया करो।
एहसासों के दरवाजों के खुलने की देरी,
जैसी चाहो छवि प्राणों में बैठा लिया करो।
जिन आकृतियों के तन-मन पर धूल जम गयी हो,
भावों के सागर में उनको नहला दिया करो।
अपने जीवन के कोलाहल से थक जाओ तो,
दुनिया की इस हलचल से मन बहला लिया करो।
</poem>
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