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रग-रग में कंटक-सी चुभती श्वास लिए भटकूँ।भटकूँ
अपने काँधे पर मैं अपनी लाश लिए भटकूँ।
लोगों की हमदर्दी का मॅुहताज़ हो गया हूँ,
सूनी-सूनी आँखों में आकाश लिए भटकूँ।
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