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रग-रग में कंटक-सी चुभती श्वास लिए भटकूँ / डी. एम. मिश्र
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10:55, 23 अगस्त 2017
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<poem>
रग-रग में कंटक-सी चुभती श्वास लिए
भटकूँ।
भटकूँ
अपने काँधे पर मैं अपनी लाश लिए भटकूँ।
लोगों की हमदर्दी का मॅुहताज़ हो गया हूँ
,
सूनी-सूनी आँखों में आकाश लिए भटकूँ।
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