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मैं उठा हूँ प्रेम का विस्तार करने के लिए।लिए
नफ़रतों की दलदलों को पार करने के लिए।
श्वास में जो शक्ति है, जो गंध है, जो तीव्रता,
सृष्टि का श्रृंगार है सत्कार करने के लिए।
रक्त में जो रंग है, जो ताप है, जो ऊर्जा,
भावना का प्राण में संचार पार करने के लिए।
देह में जो रूप है, जो तत्व है, जो साध्यता,
दर्द रूपी जीव का उपकार करने के लिए।
आँख में जो ज्योति है, जो उष्णता, जो आर्द्रता,
आदमी-सा लोक में व्यवहार करने के लिए।
प्रेम में इतना रमो संसार भी छोटा पड़े ,
जिंदगी के अर्थ को साकार करने के लिए।
</poem>
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