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साकी नही तो जाम क्या / डी. एम. मिश्र
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11:34, 23 अगस्त 2017
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<poem>
साकी नही तो जाम
क्या।
क्या
चंदा नही तो शाम क्या।
जेा साथ महफिल में न दे
,
उस दोस्त का है काम क्या।
मिलना हमारा हो सुगम
,
फिर शीत क्या, फिर धाम क्या।
ये मुफ़्त भी, अनमोल भी
,
सागर है इसका दाम क्या।
गम और मस्ती के सिवा
,
है ज़िंदगी का नाम क्या।
दो वर्ण जो लिखते मजा
,
वे ही न रचते जाम क्या।
</poem>
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