{{KKCatGhazal}}
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बड़े-बड़े पर्वत, पहाड़ देखे हैं जो वीरान बने।बने
इन्सानों के बीच में रहकर पत्थर भी भगवान बने।
उस विष का भी आदर हो जो काम मनुष्यों के आये,
देवलोक का झूठा अमरित क्यों धरती का गान बने।
अभिशापों को हँस-हँस कर जी लेना ही तो जीवन है,
राम-कृष्ण-हज़रत-ईसा मानव बनकर भगवान बने।
फूल खिलाते इसीलिए हम देवों के भी काम आये,
अपने घर की माटी महके, अंबर तक पहचान बने।
क्यों हम डरें मौत से जीवन चंद गणित है साँसों का,
धरती कभी बिछौना है तो कभी यही श्मशान बने।
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