Changes

{{KKCatGhazal}}
<poem>
जेा भी है जैसी भी है अपनी सँवारो ज़िंदगी।ज़िंदगी
काटनी है जिंदगी तो हँस के काटो ज़िंदगी।
चार दिन की है कहानी, चार दिन का साथ है,
सोच करके बस यही बाकी गुजारो ज़िंदगी।
खुद में गूँगा हो के भी दरपन यही है बोलता,
और सुंदर और भी सुंदर सजाओ ज़िंदगी।
भाग्य का यह खेल है या खेल कुदरत का कहो,
जो भी है पर सत्य के नज़दीक लाओ ज़िंदगी।
एक कांधे पे है सुख तो दूसरे कांधे पे दुख,
रूठ जाये तो गले से फिर लगा लो ज़िंदगी।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits