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अच्छा हुआ जो रंजो ग़म से दूर हो गया।गया
वो लोरियाँ मिली हैं कि इन्सान सो गया।
पिंजरे का वो सुआ था जिसे प्यार था किया,
मौका मिला तो फुर्र से आज़ाद हो गया।
मेले में वो खोता तो उसे ढूँढ ही लेता,
वो बेंवफ़ा चुपके से मेरे दिल में खो गया।
पत्थर समझ रहे थे जिसे लोग कल तलक,
बच्चों की तरह रो के हथेली भिगो गया।
वो तो हमारे दिल में है दुनिया मगर कहे,
आता नहीं है लौट के दुनिया से जो गया।
</poem>
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