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12:29, 26 अगस्त 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अर्चना कुमारी
|अनुवादक=
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी
}}
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{{KKCatMahilaRachnakaar}}
<poem>
जब भी कोई
पीठ कर देता है चेहरे के सामने
डर लगता है...
करवट बदल कर सो जाना किसी का
नींद तब चबाती है निर्भयता
औपचारिकताओं की चहलकदमी
फासले कम नहीं करती
दूरियां बड़बड़ाती हैं
नींद में चलते हुए
सब कुछ पहले जैसा हो जाना
गांठों के बाद
कितनी तहों का कारीगर
पीछे पलट कर देखने पर
परछाईंयां के सांप
न पांव धरने देतीं, न मुक्त ही करतीं
पलक की पिटारी खुलते ही
थोड़ी ताजा हवा आती है
आशाओं के देश से
संदेश लेकर अभय का।
</poem>
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