Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना कुमारी |अनुवादक= |संग्रह=प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अर्चना कुमारी
|अनुवादक=
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
सब समेट ले जाऊंगी
किसी दिन
फिर बस्तियां पूछेंगी पता मेरा
तुम्हारे खाते में जमा कर रही हूं
अपने हिस्से का दरख्त
जब जब जलेंगे पांव
मैं छांव लेने आऊंगी
रास्तों पर बिना निशान छोड़े
आस के बिखरे पत्ते
आवाज नहीं करते कभी
हवाओं का रुख कर लेते हैं
और दिशाएं सनसना कर
चिरनिद्रा की शान्ति ओढ़ लेती है।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits