गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
इज़्ज़तपुरम्-10 / डी. एम. मिश्र
1,298 bytes added
,
06:01, 28 अगस्त 2017
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह=इज़्ज़तपुरम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=इज़्ज़तपुरम् / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
सूरज उगे
ताकि
शुरू
नया दिन हो
सूरज उगे
ताकि
भींगी हुई
घास
वस्त्र ले
सुखा
मुग्ध कारा से
मुक्त भ्रमर
ताजगी ले
धूप में
और मुदित पुष्प
पुनर्विकसित हो
सूरज उगे
ताकि
कृषक
खेतों की ओर
बढ़ें और
झुण्ड पंछियों के
चारे की
तलाश में
सूरज उगे
ताकि
सो रहे
यात्री जगें
और शौच से
निवृत्त
हों
कुल्ला करें
चाय पियें
समोसे खायें
कुल्हड़ और
दोने फेंकें
झाड़ू - बहारू के
कामकाज पसरें
सूरज उगे
ताकि
एक रंग का
उजाला हो
अमीर के घर
ग़रीब के घर
</poem>
Dkspoet
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits