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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=इज़्ज़तपुरम् / डी. एम. मिश्र
}}
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<poem>
और मुखर
हो गयी
वासना की
भाषा

घूरती
दूषित
दृष्टियों में
जमा हैं जैसे
रोशनी की जगह
हजारों मन
कीचड़

चींटी की
आँखों से
मन ही मन
नाप - जोख कर रहे
मनचले

खराब नीयत
के अश्लील
बाटों से
</poem>
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