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इज़्ज़तपुरम्-21 / डी. एम. मिश्र

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<poem>
सिर्फ नये
चेहरे मिलते हैं
ट्रेन में
सूरतें वही
जानी-पहचानी

इस ट्रेन में
पूरा मुल्क चल रहा है
उत्थान है-पतन है
गाँव है-देश है

अमीरी है-गरीबी है
मौलाना बुखारी है
अटल बिहारी है
मुलायम है-माया है
भूख है-शोषण है
ब्लातकार है-चोरी है
बेरोजगारी है-मँहगाई है
और बढ़ती गुंडागर्दी को
रोकने के नुस्खे हैं
बहस के नमूने हैं
एक से बढ़कर एक
पर, ठीक सामने

हो रहा पापाचार
किसी को नहीं दिखा
शेाहदों और भेड़ियों के
झुण्ड में फंसी गुलाबो
छटपटाती रही
मदद को / गुहार लगाती रही
गिड़गिड़ाती रही
पूरी बोगी
जंगल में
तब्दील हो गयी

बड़े-बड़े चेहरों पर
उड़ने लगीं हवाइयाँ
लंबे-चौड़े भाषण
चिपक गये तालुओं में
</poem>
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