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इज़्ज़तपुरम्-64 / डी. एम. मिश्र
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<poem>
गणित जो बिठा ले
वही असली व्यापारी है
वरना तो झुर्रियाँ
वक्त के पहले
काँटों के जाल बुनें
जरब की टेक्नीक से
राई पहाड़ बने
कछुए की चाल से
बढ़ता है योग भी
जब टेंट की
मोटाई तक
आड़े नहीं आती
तंगी सधे हाथ के
पर
घटाव
शून्य के भी
नीचे उतर आता है
और फिर कर्ज का
भयावह स्वरूप ले
न्यून से न्यूनतम
अति न्यूनतम तक
कट-बँट कर
तकसीम
अस्तित्व की समाप्ति पर
ही विराम ले
</poem>
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