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इज़्ज़तपुरम्-81 / डी. एम. मिश्र
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<poem>
अँधेरे की दुनिया
उजाले में
फिर निखरी
दिन निकला
बदल गयीं
कैसे रोशनाइयॉ
प्रेस कपड़े
फ्रेश चेहरे
चैम्बर में फिर साहब
सिर पर सवार
फिर धुली टोपी
</poem>
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