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इज़्ज़तपुरम्-92 / डी. एम. मिश्र

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<poem>
कौन है?
जीवन का रुख
आया मोड़ने
फिर थके-हारे
नाटक के मोड़ पर

बढ़ गये समय के
उल्टे पग लौटी
अर्थहीन जिंदगी
छलक आयी आँखों में
दस साल बाद फिर

धूमिल स्मृतियों की
मोटी तह तोड़कर
क्वारे मन के
धुँधले दर्पण में
फिर याद आने लगे
वही साथ-साथ बिताये
अप्रतिम क्षण

वही ट्रेन
वही बेागी
जानी-पहचानी
वही आवाज
वही मुखाकृति
वही रामफल

बदल गया तो
उम्र भर रंग
और आखों का वह पानी!
</poem>
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