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09:40, 12 अक्टूबर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=निधि सक्सेना
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<poem>
उसने ब्याह किया
और समझा कि अब वो पूर्ण हुआ
कि अब उसके एक पूँछ ऊग आई है
जो उम्र भर उससे बँधी रहेगी
हर वक्त उसके पीछे चलेगी
उसकी सफलता पर
मगन मस्त हिलेगी
उसकी ख़ुशी में नाचेगी
उसकी उदासी में
सीधी लटक जायेगी
जब किसी अजनबी से मुख़ातिब होगा
सहम कर दुबक जायेगी
जब कभी उद्विग्न होगा
डर कर पैरों में घुस जायेगी
उसके हर भाव को अचूक अभिव्यक्त करेगी
हाँ वो एक हद तक अच्छी पूँछ साबित हुई
और वो विशुद्ध ????
</poem>
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