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<poem>
तुम न झुकाओ पलकें,
रीती हो जाएगी
सपनों की गागर.

तुम न ओंठ थिरकाओ,
होगा उद्वेलित
चाहत का सागर.

तुम न आँचल लहराओ ,
आहों का ढेर
लग जायेगा आँगन.

तुम अब न मुस्काओ,
गाने लगेंगें
प्रेमगीत पाहन.

(प्रकाशित- विश्वामित्र, कलकत्ता, १९७९)
</poem>
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