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09:17, 13 अक्टूबर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=दिनेश श्रीवास्तव
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
लाखों का मज़मा है,
जगह बना ठाढ़े हैं.
हर तरफ से घेरे हैं
टोलियाँ पिशाचों की.
ज़रा डगमगाते ही
कुचल दिए जायेंगे,
दुनिया के चेहरे पर
शिकन तक न आयेगी.
सारा तन, सारा मन,
सारा ध्यान, सारे स्वप्न
थके पाँव रोपने में
बिछड़ गयी पीर कहीं
गांव छूट जाने की.
बिसर गयी कोयल की तान.
रे मन
अब धुएं को ही
गोधूलि मान.
</poem>