Changes

घरेलू औरत / दीपिका केशरी

773 bytes added, 11:27, 13 अक्टूबर 2017
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपिका केशरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दीपिका केशरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
शाम की चाय के साथ
घरेलू औरतें उबालती है अपनी थकान
फिर कितने सलीके खुद को समेट कर
करीने से माहताब की रोशनी में ढ़ल आती है
कि कोई यकायक देखें तो कह उठे
कितनी आफताबी हो तुम,
पर उसका घरेलू आदमी इसके विपरीत ये कहता है
कि तुम दिन भर करती क्या हो !
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits