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02:54, 15 अक्टूबर 2017 {KKGlobal}}
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|रचनाकार=पूनम अरोड़ा 'श्री श्री'
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<poem>
एक रात के अलाव से जो लावा निकला था.
उसने अबोध स्त्री के माथे पर शिशु उगा दिया.
शिशु जब-जब रोया
अकेला रोया.
अबोध स्त्री के हाथ अपरिपक्व थे और स्तन सूखे.
किसी बहरूपिये ने एक रात एक लम्बी नींद स्त्री के हाथ पर रख एक गीत गया.
शिशु किलकारी मारने लगा.
देवताओं ने चुपचाप सृष्टि में तारों वाली रात बना दी.
गीत गूँजता रहा सदियों तक.
अबोध स्त्रियाँ जनती रहीं कल्पनाओं के शिशु. और बहरूपिये पिता सुनाते रहे समुद्री लोरियाँ.
</poem>
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