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12:18, 16 अक्टूबर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नील्स फर्लिन
|संग्रह=
}}
<Poem>
हमने अधिक से अधिक अन्वेषण किया
और धरती वृहद् से वृहद्तम होती गयी.
फिर और अधिक अन्वेषण किया
और धरती, मात्र अब एक कण रह गयी
एक छोटा सा गुब्बारा
अनंत में.
'''(मूल स्वीडिश से अनुवाद : अनुपमा पाठक)'''
</poem>
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