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08:46, 17 अक्टूबर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=टोमास ट्रान्सटोमर
|संग्रह=
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<Poem>
जब जल्लाद ऊब जाता है हो जाता है वह ख़तरनाक.
जलता हुआ आकाश समेट लेता है स्वयं को.
दस्तक सुनाई देती है कक्ष दर कक्ष
और कमरे से बाहर बह उठता है तुषार.
कुछ पत्थर चमकते हैं पूर्ण चन्द्र की तरह.
'''(मूल स्वीडिश से अनुवाद : अनुपमा पाठक)'''
</poem>
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