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मुखौटे / टोमास ट्रान्सटोमर

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|रचनाकार=टोमास ट्रान्सटोमर
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}}
<Poem>
१.

रास्ते के छोर पर दिख रही है मुझे सत्ता
और है वह एक प्याज़ की तरह
अधिव्याप्त चेहरे के साथ
जो खुलता है एक के बाद एक ...

२.

थियेटर हो गए हैं खाली. मध्यरात्रि है.
अक्षर अंगारों की लपटों में जल रहे हैं मुखौटों पर.
उस अनुत्तरित पत्र की पहेली
सर्द चमक के माध्यम से रही है डूब.


'''(मूल स्वीडिश से अनुवाद : अनुपमा पाठक)'''
</poem>
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