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ब्रह्मपिशाच / रामनरेश पाठक

9 bytes added, 14:48, 17 अक्टूबर 2017
एक खारे जल के पहाड़ ने
लील लिया
वह निस्पंद महानगर  
कमरे में टंगे प्रेमिकाओं के चित्र
स्याह पंखों में बदल गए  सभी मेजो मेज़ों के कागज़ात औए दस्तावेज़
सोये बच्चों के सिरहाने
 पतंग या वसीयत बन कर रखे गए
नारे और गुल और परचे
नहान घर में बह गए वायलिने वायलिनें छिपकिली की लाश बनकर पहाड़ में चस्पां हो गयी  
मूर्तियाँ प्रेत बनकर उड़ गयी
और चुप बैठा रहा एक ब्रह्मपिशाच
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