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|रचनाकार=जया पाठक श्रीनिवासन
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<poem>
स्कूल का बस्ता
लटका हुआ
संकरे नाज़ुक से कन्धों पर
एक बोझ यकीनन
किसी और की सोच का, नसीहत का
अंक, ज्यामिति, व्याकरण
सब के साथ
दिमाग में किसी वायरिंग से जैसे
जुड़ा हुआ
जोड़ा हुआ
फिर भी अलग कुछ
जिसे उतार कर फेंका जा सकता है
अगर नोच कर वायरिंग तोड़ सकें
क्यों नहीं सीखा तुमने
कभी कभी इसे उतार कर
फेंक देने का तरीका
ओह अच्छा! तुम्हारे हाथ
छोटे छोटे कमज़ोर जो हैं
अब तुम यह बस्ता लादे
जवान हो जाओ
अभ्यास की बात है
कुछ दिनों में
यह बोझ ही
तुम्हारी सोच होगा
</poem>
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