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04:27, 21 अक्टूबर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राबर्ट ब्लाई
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<Poem>
कितना अजीब है सोचना
सारी महात्वाकांक्षाओं को छोड़ देने के बारे में !
अचानक मैं देखता हूँ साफ़-साफ़ आँखों से
बर्फ की एक सफ़ेद पपड़ी
जो अभी-अभी गिरी है घोड़े के अयाल पर !
'''अनुवाद : मनोज पटेल'''
</poem>
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