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द्वितीय अध्याय / प्रथम वल्ली / भाग १ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति
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18:24, 20 जून 2008
सब शब्द, रस, स्पर्श, मैथुन, गंध रूप की इन्द्रियां,<br>
हैं प्रभु अनुग्रह से सुलभ मानव को सब ज्ञानेन्द्रियों।<br>
नचिकेता प्रिय उसकी दया से ही विदित संसार मैं,
<br>
क्या शेष क्षण भंगुर रहा, क्षय क्षणिक जग व्यापार में॥ [ ३ ]<br><br>
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Lalit Kumar
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