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ईमान की बात / रामनरेश पाठक

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|संग्रह=मैं अथर्व हूँ / रामनरेश पाठक
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<poem>
एक वेश्या ने
अपने बैठके के बुकशेल्फ में
सजा कर रख लिया है
साहित्य, दर्शन, कला
संस्कृति, इतिहास, विज्ञान
सिद्धांत, विचार, व्यवहार
सभ्यता और मिथक
मैं अपने कमरे में
निस्तब्ध या विश्रब्ध
भर्तृहरि के शब्दों में
गा रहा हूँ--
'यां चिन्तयामि सततं...'

</poem>
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