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विक्रमण / रामनरेश पाठक
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17:52, 25 अक्टूबर 2017
एक सूखे समुद्र का विवृत्त स्तब्ध हाहाकार
लील रहा है
अनस्तित्व, लय
,
पारद-तरलता और
पारदर्शी काले दर्पण को
</poem>
Anupama Pathak
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