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चलाने लगता हूँ जब
किसी औरत से प्यार प्यार का चक्करचक्कर
या महज देखने लगता हूँ राहगीरों की तरफ़...
हर कोई सँभालने लगता है अपनी जेबें ।
कितना हास्यास्पद हास्यास्पद !
अरे रंकों के यहाँ भी
कोई डाका डाल सकता है क्या क्या ?
बीत चुके होंगे न जाने कितने वर्ष
जब मालूम होगा --
मैं
कम नहीं था धनी
किसी भी प्येरपोंट प्येरपोंट मोरगन की तुलना में ।
न जाने कितने वर्षों बाद
रह नहीं पाऊँगा जीवित जब
दम तोड़ दूँगा भूख के मारे
या पिस्तौल पिस्तौल का निशाना बन कर --
आज के मुझ उजड्ड को
अन्तिम शब्द शब्द तक याद करेंगे प्राध्यापक प्राध्यापक --
कब ?
कहाँ ?
कैसे अवतरित हुआ ?
साहित्य साहित्य विभाग का कोई महामूर्ख
बकवास करता फिरेगा भगवान-शैतान के विषय में ।
झुकेगी
चापलूस और घमंडी घमण्डी भीड़ :पहचानना मुश्किल हो जायेगा जाएगा उसे :मैं-मैं ही हूँ क्या क्या :कुछ-न-कुछ वह अवश्य अवश्य ही खोज निकालेगी
मेरी गंजी खोपड़ी पर
सींग या प्रभामण्डल जैसी कोई चीज़ ।
और मेरी अमरता
शताब्दियों में से उद्घोष करती
एकत्र करेगी दुनिया भर के मेरे प्रशंसक --— चाहिए क्या तुम्हें तुम्हें यह सब कुछ ?
अभी देता हूँ
मात्र एक स्नेहपूर्ण मानवीय शब्द शब्द के बदले में ।
लोगो !
खेत और राजपथ रौंदते हुए !
चले आओ दुनिया के हर हिस्से हिस्से से ।
आज
पेत्रोग्राद, नाद्योझिन्सकाया नाद्योझिन्सकाया मेंबिक रहा है एक अमूल्य अमूल्य मुकुटदाम है जिसका मात्र एक मानवीय शब्द शब्द ।
सच्चसच्च, सौदा सस्ता सस्ता है ना ?
पर कोशिश तो करो
मिलता भी है कि नहीं --— वह एक शब्द मानवीय ।शब्द मानवीय। '''मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह'''
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