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10:19, 20 नवम्बर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष
|अनुवादक=
|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
चलता हुआ भी
ठहरा हुआ सा लगता है
चलते-चलते रास्ते में
रुक जाता कहीं
तो देर तक अटका हुआ रहता है
नहीं! थकान या
कमजोरी से नहीं ऐसा होता
न सांसें फूलती इसकी
न पिण्डलियों की पेशियां कमजोर
न यह दीर्घसूत्री है, न कामचोर
फिर क्या है जो यह अक्सर
पिछड़ जाता दौड़ में
आखिर कोई तो बात होगी?
ज़रा गौर से देखिए बंधु,
कहीं इसकी पीठ पर भी तो आँख नहीं!
</poem>