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कामना / इंदुशेखर तत्पुरुष

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|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
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<poem>
जो हमें जिलाती है
जलाती है वही हमको।

जो इस्पाती ढांचे
जलने से कर देते इंकार
उनको कर देती भुरभुरा
जंग की मार से
ऐसी प्रखर है इसकी धार।

सूर्य-किरणों से अधिक उद्दीपक
ऑक्सीजन से अधिक क्रियाषील
है यह हमारी ही रची हुई

जो हमें भरती हैं
वही हमें आखिर
खोखला करती है।
</poem>
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