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14:09, 21 नवम्बर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राजीव भरोल
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[[Category:ग़ज़ल]]
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आँखों में थे सितारे, हर ख़ाब था गुलाबी
उस उम्र में था मेरा हर फलसफा गुलाबी
मौसम शरारती है मेरी निगाहों जैसा
है हर गुलाब तेरे, रुखसार सा गुलाबी
फूलों को बादलों को, हो क्यों न रश्क आखिर
गेसू घटाओं जैसे, रंग आपका गुलाबी
बदला है कुछ न कुछ तो, कुछ तो हुआ है मुझको
दिखता है आज कल क्यों, हर आइना गुलाबी
होली का रंग है ये, कह दूंगा मुस्कुरा कर
पूछा जो उसने क्यों है, चेहरा मेरा गुलाबी
</poem>