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14:15, 21 नवम्बर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राजीव भरोल
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
मेरे बचपन की निशानी है अभी तक गाँव में
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में
इसके एहसासों में अब भी हैं पुरानी खुशबुएँ
आँगन आँगन रातरानी है अभी तक गाँव में
शहर में मेरा बड़ा सा घर है, सब सुविधाएँ हैं
फिर भी अम्मा है कि रहती है अभी तक गाँव में
गाँव के जीवन में थोड़ी मुश्किलें भी हैं तो क्या
रंग ख़ाबों का सुनहरी है अभी तक गाँव में
है यहाँ हासिल सभी को अपने हिस्से की खुशी
सब घरों तक धूप आती है अभी तक गाँव में
दर ब दर हूँ मैं मगर बेघर नहीं हूँ दोस्तो
मेरे पुरखों की हवेली है अभी तक गाँव में