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|रचनाकार=राजीव भरोल
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[[Category:ग़ज़ल]]
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तेरी खुशबू फिज़ाओं में बिखर जाए तो अच्छा हो
कोई झोंका तुझे छू कर गुज़र जाए तो अच्छा हो

कई दिन से तसव्वुर आपका मेहमां है इस दिल में
ये मेहमाँ और थोड़े दिन ठहर जाए तो अच्छा हो

सफर की मुश्किलों का यूं तो कुछ शिकवा नहीं फिर भी
मेरी मंजिल का हर रस्ता संवर जाए तो अच्छा हो

कफस में ही अगर रहना है तो उड़ने की हसरत क्यों
कोई आकर मेरे ये पर कतर जाये तो अच्‍छा हो

बहुत रुसवा हुआ हूँ मैं यहाँ सच बोल कर यारो
ये पागलपन मेरे सर से उतर जाए तो अच्छा हो

सराबों के तअक्कुब में भटकता फिर रहा है जो
वो भूला सुबह का अब अपने घर जाए तो अच्छा हो
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